स्विट्जरलैंड में सरकार कैसे चुनी जाती है? Who holds the real power in Switzerland?

      स्विट्जरलैंड दुनिया के सबसे अमीर और खूबसूरत देशों में से है। यहां की जिंदगी जितनी सरल है, पॉलिटिकल सिस्टम उतना ही कॉम्प्लेक्स और यूनिक। स्विट्जरलैंड में राष्ट्रपति का पद सबसे ऊंचा है, फिर भी वह मुल्क का सबसे ताकतवर व्यक्ति नहीं होता। स्विट्जरलैंड में 26 राज्य हैं। वे केंद्र सरकार को मानते तो हैं लेकिन हर राज्य के पास अपना संविधान भी है। स्विट्जरलैंड की संसद कानून तो बना सकती है लेकिन जनता जब चाहे उस कानून को रद्द भी करवा सकती है। गौर से देखें तो स्विट्जरलैंड में काफी विडंबनाएं हैं। ऐसा लगता है यह सिस्टम कभी भी रह सकता है। मगर इसने ना सिर्फ खुद को बचा कर रखा है बल्कि समय के साथ मजबूत होता गया है। लेकिन यह सिस्टम आखिर काम कैसे करता है? स्विट्जरलैंड में सरकार कैसे चुनी जाती है? स्विट्जरलैंड में असली पावर किसके पास है? और कौन है स्विट्जरलैंड का पावर बास? 


       स्विट्जरलैंड सेंट्रल यूरोप में बसा है। यह एक लैंड लॉक देश है। इसकी जमीन पांच देशों की सीमा से लगती है। ऑस्ट्रिया, जर्मनी, लंचेस्टाइन, इटली और फ्रांस। स््जरलैंड की पॉपुलेशन लगभग 90 लाख है। 2024 में इसकी पर कैपिटा इनकम $900 थी। इस मामले में दुनिया के टॉप 10 देशों में स्विट्जरलैंड का नाम है। 2024 में स्विट्जरलैंड की जीडीपी 936 बिलियन थी। यानी कि पाकिस्तान की जीडीपी से दोगुनी से भी ज्यादा। जबकि पाकिस्तान की आबादी स्विट्जरलैंड से 29 गुना ज्यादा है। इससे आप स्विट्जरलैंड की अमीरी का अंदाजा लगा सकते हैं। कई स्विस कंपनियां पूरी दुनिया में मशहूर हैं। जैसे नेस्ले ,फिलिप, ओलेक्स, लॉजिटेट आदि। अब इतिहास की तरफ चलते हैं। स्विस कॉन्फेडरेशन की शुरुआत 1291 की मानी जाती है। जब तीन राज्यों ने मिलकर बाहरी दखल का मुकाबला करने का फैसला किया। उससे पहले छोटे-छोटे शहरों और कस्बों में बटा हुआ था। इस पर सबसे पहले जूलियस सीजन ने कब्जा किया था। रोमंस के पतन के बाद यह इलाका दूसरे साम्राज्यों के नियंत्रण में रहा। लेकिन 1291 के बाद उन्होंने मिलकर चुनौती देनी शुरू की। शुरुआत तीन राज्यों से हुई थी। धीरे-धीरे और भी राज्य इसमें शामिल होते गए। स्विस लोग यूरोप की ज्यादातर लड़ाइयों से अलग-थलग रहे। हालांकि वे भाड़े पर दूसरों के लिए लड़ने जरूर जाते। फिर 1798 में नेपोलियन ने स्विट्जरलैंड पर हमला कर दिया। उसने हेलवेटक रिपब्लिक की स्थापना भी की लेकिन लोगों को यह खासा पसंद नहीं आया। इसीलिए उसको बहुत जल्द बाहर निकलना पड़ा। 1814 में नेपोलियन को करारी शिकस्त मिलने लगी थी। उसका साम्राज्य ढहने की कगार पर पहुंच चुका था। तब यूरोप के ताकतवर देश वियाना में इकट्ठा हुए। वे नए सिरे से यूरोप का चरित्र और नक्शा डिसाइड कर रहे थे। इसमें फ्रांस को बहुत सारी जीती हुई जमीनें लौटानी पड़ी। स्विट्जरलैंड के संदर्भ में यह हुआ कि उसको न्यूट्रल घोषित कर दिया गया। सभी देशों ने उसकी न्यूट्रलिटी का सम्मान करने का वादा किया। इसी वजह से स्विट्जरलैंड पहले और दूसरे विश्व युद्ध से दूर रहा। दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूनाइटेड नेशंस बना तो स्विट्जरलैंड को दूसरा सेंटर बनाया गया लेकिन उसने मेंबरशिप नहीं ली। वो 57 बरस बाद 2002 में यूएन का मेंबर बना। जबकि नेटो और यूरोपियन यूनियन में आज तक शामिल नहीं हुआ है। न्यूट्रल देश होने के कारण सबसे प्रभावी शांति समझौते स्विट्जरलैंड में ही हुए हैं।

     कुछ बड़े समझौतों पर एक नजर डालते हैं। पहले वर्ल्ड वॉर के बाद लीग ऑफ नेशंस की स्थापना जिनेवा में हुई। 1923 में लुसान संधि ने टर्किश रिपब्लिक का रास्ता तैयार किया। 1925 में जेनेवा प्रोटोकॉल पर दस्तखत हुए। इसमें युद्ध में केमिकल और बायोलॉजिकल वेपन्स के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया गया। 1954 में इंडो चाइना वॉर का जिनेवा में हुआ। इसने साउथ ईस्ट एशिया में फ्रांस का कंट्रोल खत्म कर दिया। 1988 में सोवियत अफगान वॉर का खात्मा भी जेनेवा कॉर्च से हुआ था। अब आते हैं पॉलिटिकल सिस्टम पर। स्विट्जरलैंड में डायरेक्ट डेमोक्रेसी है। वहां जनता सीधे सरकार में पार्टिसिपेट करती है। नॉर्मल देशों में वोटिंग को सबसे बड़ा अधिकार माना जाता है। जनता किसी और तरीके से सरकार को प्रभावित नहीं कर सकती। लेकिन स्विट्जरलैंड एकदम अलग है। अगर सरकार संविधान में संशोधन करना चाहे या उसकी किसी इंटरनेशनल ग्रुप को ज्वाइन करने की इच्छा हो तो जनमत संग्रह कराना अनिवार्य है। उसमें पास होने के बाद ही बात आगे बढ़ सकती है। मान लीजिए अगर कोई कानून आम लोगों को पसंद नहीं आया तो उनके पास इसको रद्द कराने का पूरा अधिकार भी है। इसके लिए 100 दिनों में 500 वोटर्स के सिग्नेचर जुटाने होते हैं। सिग्नेचर मिलते ही जनमत संग्रह जरूरी हो जाता है। उसमें जनता साधारण बहुमत से कानून को खारिज कर सकती है। अगर आम लोग चाहे तो संविधान में संशोधन भी करा सकते हैं। इसके लिए 1 लाख वोटर्स के दस्तखत की जरूरत होती है। फिर जनता के वोट से फाइनल डिसीजन लिया जाता है। यह तो हुई यूनिकनेस। अब सरकार पर आते हैं। स्विट्जरलैंड में सरकार के तीन मुख्य अंग हैं। कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका। कार्यपालिका की शक्ति फेडरल काउंसिल के पास है। इसको आप भारत के सिस्टम से भी समझ सकते हैं। भारत में कार्यपालिका राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और काउंसिल ऑफ मिनिस्टरर्स से मिलकर बनी है। काउंसिल ऑफिस्टर्स में एक पार्टी के मेंबर भी हो सकते हैं और कई पार्टियों के भी। यह इस बात पर निर्भर करता है कि लोकसभा में बहुमत कैसे हासिल हुआ है। काउंसिल ऑफिस्टर्स के मुखिया प्रधानमंत्री होते हैं। वे राष्ट्रपति के नाम पर देश का शासन चलाते हैं। यानी एक हायरार्की है जो बनी हुई है। जिसमें काउंसिल ऑफ मिनिस्टर से ऊपर प्रधानमंत्री हैं और उनसे ऊपर उपराष्ट्रपति और फिर राष्ट्रपति आते हैं। ज्यादातर देशों में कार्यपालिका ऐसे ही काम करती है। लेकिन स्विट्जरलैंड की फेडरल काउंसिल की बात कुछ और है। इसमें सात मेंबर होते हैं। कार्यपालिका इन्हीं सातों के इर्द-गिर्द घूमती है। वे कैबिनेट भी हैं। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की कुर्सी भी इन्हीं के पास है। फेडरल काउंसिल के सदस्यों का कार्यकाल 4 बरस का होता है। उनका चुनाव देश की संसद करती है। उन्हीं के बीच में से किसी एक को राष्ट्रपति चुना जाता है। लेकिन राष्ट्रपति का कार्यकाल सिर्फ एक बरस का होता है। हर साल 1 जनवरी को नया राष्ट्रपति नियुक्त किया जाता है। कोई व्यक्ति लगातार दो टर्म में राष्ट्रपति नहीं रह सकता। यह नाम मात्र का पद है। उसको अलग से कोई शक्ति नहीं मिलती। उन्हें बस रिप्रेजेंट करने के लिए चुना जाता है। फेडरल काउंसिल के सातों मेंबर्स की शक्ति एक दूसरे के बराबर होती है। कोई किसी का बॉस नहीं होता। हर एक फैसला सर्वस्मति से लिया जाता है। सातों लोग हेड ऑफ द गवर्नमेंट भी होते हैं और हेड ऑफ द स्टेट भी। उन्हें कार्यकाल के बीच किसी भी तरह हटाया नहीं जा सकता। लेकिन ये सात मेंबर्स आते कहां से हैं? जैसा कि हमने आपको बताया उनका चुनाव स्विट्जरलैंड की संसद करती है। संसद के दो सदनों को मिलाकर 246 मेंबर्स हैं। फेडरल काउंसिल के चुनाव में बस वही वोट डाल सकते हैं लेकिन कैंडिडेट कोई भी नागरिक हो सकता है। बशर्ते उसको वोट डालने का अधिकार मिला हो। क्योंकि एक सीट के लिए अलग-अलग राउंड्स की वोटिंग होती है। जब तक किसी कैंडिडेट को 124 वोट्स नहीं मिल जाती तब तक वोटिंग चलती रहती है। यूं तो इस इलेक्शन में कोई भी खड़ा हो सकता है मगर आमतौर पर पॉलिटिकल पार्टियों के कैंडिडेट ही जीतने आए हैं क्योंकि पार्लियामेंट में सीटें उन्हीं के पास होती हैं। स्विट्जरलैंड में चार मुख्य पॉलिटिकल पार्टियां हैं। द स्विस पीपल्स पार्टी, एसबीपी, द सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, एसपी, द लिबरल्स, एफडीपी और द सेंटर, दमते। इनके बीच 1959 में एक समझौता हुआ था। उन्होंने हमेशा साथ में सरकार चलाने का फैसला किया था। इसीलिए फेडरल काउंसिल की सीटें इन्हीं चारों के पास रहती हैं। किसी पार्टी को ज्यादा या कम सीटें आ जाए तब भी इक्वेशन नहीं बदलती। इसको मैजिक फार्मूला कहा जाता है। इसकी वजह से स्विस सिस्टम में स्टेबिलिटी बनी हुई है। अब सरकार के दूसरे अंग विधायिका को जान लेते हैं। स्विट्जरलैंड की संसद का ऑफिशियल नाम है फेडरल असेंबली। यह केंद्र से जुड़े विषयों पर कानून बनाती है। राज्यों से जुड़े मसाइल राज्य की विधानसभाएं देखती हैं। फेडरल असेंबली में दो सदन है। ऊपरी सदन को काउंसिल ऑफ स्टेट्स कहते हैं। इसमें 46 मेंबर्स होते हैं। ये 26 राज्यों से चुने जाते हैं। 20 बड़े राज्यों से दो-दो सेनेटर्स जबकि छह छोटे राज्यों से एक-एक सेनेटर का चुनाव होता है। दूसरे सदन का नाम है नेशनल काउंसिल। इसमें 200 मेंबर्स हैं। उनकी सीटों का बंटवारा पॉपुलेशन के बेसिस पर हुआ है। जिन राज्यों में जनसंख्या ज्यादा है, उनके ज्यादा रिप्रेजेंटेटिव संसद पहुंचते हैं। नंबर डिफरेंस के बावजूद दोनों सदन के पास बराबर शक्तियां हैं। दोनों सदनों के अप्रूवल के बिना कोई भी फैसला मान्य नहीं होता और संसद क्या-क्या करती है? कानून बनाती है। बजट अप्रूव करती है। फेडरल काउंसिल के सदस्यों को चुनती है। सरकार के कामकाज की निगरानी करती है। सर्वोच्च अदालत के जजों की नियुक्ति भी संसद से ही होती है। देश में इमरजेंसी लगाने का फैसला भी संसद ले सकती है। यूं तो संसद के पास ज्यादातर जरूरी पावर्स हैं। उसके फैसले को ना तो सरकार और ना सर्वोच्च अदालत ही बदल सकती है। इस मामले में संसद की शक्ति एब्सोल्यूट है। लेकिन संसद के ऊपर लिमिटेशंस भी हैं ताकि वह निरंकुश ना हो जाए। मसलन आम लोग रेफरेंडम के जरिए उसके फैसलों को चुनौती दे सकते हैं। इसके अलावा संसद फेडरल काउंसिल के किसी भी मेंबर को कार्यकाल के बीच में नहीं हटा सकती है। स्विट्जरलैंड में ज्यादातर फैसले आपसी सहमति से लिए जाते हैं। सरकार और विपक्ष के बीच कोई दुराव नहीं मिलता। बिल पर वोटिंग से पहले सबको सेम पेज पर लाने की कोशिश रहती है। विपक्ष के सुझावों को भी जगह दी जाती है। जिसके चलते अभी तक टकराव की स्थिति पैदा नहीं हुई है। 

     सरकार का तीसरा अंग है न्यायपालिका। स्विट्जरलैंड की सबसे बड़ी अदालत फेडरल सुप्रीम कोर्ट है। यह राज्यों के बीच, केंद्र और राज्यों के बीच और केंद्र और आम लोगों के बीच विवादों का निपटारा करती। अगर किसी राज्य और केंद्र के कानून में ओवरलैपिंग होती है तब भी सुप्रीम कोर्ट का फैसला अंतिम होता है। हालांकि मानव अधिकार से जुड़े मसलों पर यूरोपियन कोर्ट ऑन ह्यूमन राइट्स ईसीएचआर में अपील की जा सकती है। फेडरल सुप्रीम कोर्ट के नीचे तीन और फेडरल कोर्ट्स हैं। फेडरल सिविल कोर्ट, फेडरल क्रिमिनल कोर्ट और फेडरल एडमिनिस्ट्रेटिव कोर्ट। उनसे नीचे राज्यों की अपनी-अपनी अदालतें हैं। अगर इन अदालतों के फैसले के खिलाफ अपील होती है तब ऊपर की अदालतें सुनवाई करती हैं। यूं तो स्विट्जरलैंड में न्यायपालिका स्वतंत्र है। जजों से निष्पक्ष रहने की उम्मीद भी की जाती है। लेकिन फेडरल कोर्ट्स के जजों की नियुक्ति संसद करती है। इसमें पॉलिटिकल पार्टियां अपनी विचारधारा का ध्यान रखती हैं। दूसरी बात कोर्ट के पास संसद के किसी फैसले को पलटने का अधिकार नहीं है। इसीलिए ना तो वे स्टेटस को बदलते हैं और ना उसको चुनौती ही देते हैं। सरकार का सिस्टम आपको समझ में आ गया होगा लेकिन मिलिट्री के बिना ये कहानी अधूरी रह जाएगी। क्योंकि स्विट्जरलैंड 1815 से न्यूट्रल है। उसने ना तो नेटो की मेंबरशिप ली है और ना उसके पास प्रॉपर आर्मी ही है। वहां मिलिशिया सिस्टम काम करता है जिसमें हर एक नागरिक की भागीदारी सुनिश्चित की गई है। 18 से 20 बरस के स्वस्थ नागरिकों के लिए मिलिट्री सर्विस अनिवार्य है। ट्रेनिंग के बाद वे नॉर्मल जॉब्स में जा सकते हैं। लेकिन उन्हें अपने घर में हथियार रखना होता है ताकि जरूरत पड़ने पर वे जल्द से जल्द लड़ाई के लिए तैयार हो सके। शांति काल में सुस आर्मी का कोई चीफ नहीं होता। लेकिन जंग की स्थिति में संसद किसी को आर्मी चीफ बना सकती है। नॉर्मल सिचुएशंस में आर्मी रक्षा मंत्रालय के अधीन काम करती है। आर्मी के मामले में फाइनल डिसीजन फेडरल काउंसिल का होता है। स्विस आर्मी में लगभग 1.5 लाख सैनिक काम कर रहे हैं। लेकिन प्रोफेशनल सैनिकों की संख्या 2000 से भी कम है। यानी आर्मी फुल फ्लेजेड वॉर के लिए तैयार नहीं है। सरकार अपने बजट का 1% से भी कम हिस्सा डिफेंस पर खर्च करती है। 2032 तक 1% का टारगेट सेट किया गया है। स्विट्जरलैंड का एयर डिफेंस सिस्टम भी नाजुक स्थिति में है। एयरफोर्स के पास 20 सदी के फाइटर जेट्स हैं। सरकार ने F35 का आर्डर दे रखा है। लेकिन 2028 से पहले डिलीवरी नहीं हो सकती। जब से रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है, स्विट्जरलैंड में बदलाव की मांग उठ रही है। आर्मी को मॉडर्नाइज करने की बात भी चल रही है। लेकिन जब तक नेशनल लेवल पर सर्वसम्मति नहीं बनती तब तक हालात बदलने की उम्मीद नहीं है। अब कुछ रोचक फैक्ट्स भी आपको बता देते हैं। स्विट्जरलैंड को आधुनिकता और लोकतंत्र के लिए मिसाल माना जाता है। लेकिन वहां 1971 तक महिलाओं को वोटिंग का अधिकार नहीं था। स्विट्जरलैंड के पास अपनी सुरक्षा के लिए प्रॉपर आर्मी नहीं है। मगर उसके सैनिक दुनिया भर में पीस कीपिंग मिशनंस के लिए जाते रहते हैं। वेटिकन सिटी की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी स्विस गार्ड्स के पास है। स्विट्जरलैंड में जनमत संग्रह बेहद आम है। स्विस नागरिक हर साल औसतन चार बार वोट डालते हैं। तो ये थी स्विट्जरलैंड के पावर स्ट्रक्चर की कहानी जहां आम जनता ही असली पावरबाज है? आपको स्विट्जरलैंड का सिस्टम कैसा लगा?  हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताइएगा। 


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