क्यों बर्बाद हुआ AKAI ? The Watchman Who Destroyed a Billion Dollar Brand! | Business Case Study

 क्यों बर्बाद हुआ AKAI🔥The Watchman Who Destroyed a Billion Dollar Brand!




         90ज में जब देश का आम इंसान कलर टीवी के सपने देख रहा था तो उसे पूरा करने आया अकाय। इस ब्रांड ने महंगे कलर टीवी को सिर्फ ₹9,999 में ल्च कर दिया और कुछ ही सालों में मार्केट का 20% से ज्यादा हिस्सा अपने नाम कर लिया। यानी कि हर पांचवें घर के अंदर उस टाइम अकाय का टीवी लग चुका था। लेकिन अपने पीक के सिर्फ 2 साल के अंदर ही कलर टीवी मार्केट में क्रांति लाने वाला अकाय अचानक खुद ही बेरंग हो गया और पूरी तरीके से बैंकप्ट हुई। रीज़न कंपटीशन या इनोवेशन की कमी नहीं बल्कि एक आदमी था। एक ऐसा शातिर आदमी जो कभी चौकीदार हुआ करता था। उसने अकाय की हंसती खेलती बगिया को उजाड़ कर रख दिया। यह चौकीदार इतना बड़ा खिलाड़ी था कि बड़े-बड़े ठग भी इसके सामने पानी भरते थे। अब सवाल यह है कि वो चौकीदार था कौन? और उसने ऐसा क्या किया कि कम दाम में टीवी बेचने के बावजूद भी अकाय इंडियन मार्केट में टिक नहीं पाया। और अगर अकाय बैंककरप्ट हो चुका है तो आज उसके प्रोडक्ट मार्केट में कैसे दिखते हैं?

   1929 में जापान के टोक्यो शहर में एक इंजीनियर मासुकीची अकाय उसने अपने बेटे सबूरो के साथ मिलकर एक छोटी सी कंपनी की शुरुआत की जिसका नाम रखा अकाय इलेक्ट्रिक लिमिटेड। यह कंपनी शुरुआत में रेडियो में यूज़ होने वाले कंपोनेंट्स बनाती थी। अपने मजबूत टिकाऊ और कम प्राइस वाले प्रोडक्ट की वजह से अकाय जल्द ही क्वालिटी इलेक्ट्रॉनिक का एक सिंबल बन चुकी थी। लेकिन 1940 आते-आते अकाय की ग्रोथ अचानक से रुक गई। कारण था सेकंड वर्ल्ड वॉर। प्रोडक्शन बंद हो गया। अकाय की सारी फैसिलिटीज मिलिट्री में यूज़ होने के लिए चली गई। आखिर में जब युद्ध खत्म हुआ तो 1946 में अकाय को वापस से काम करने का मौका मिला। लेकिन तब तक जापान ऑलमोस्ट तबाह हो चुका था। घरों को वापस बसाने के लिए होम अप्लायंसेस की जरूरत थी। तो जापान की सरकार ने इंडस्ट्रीज को कंज्यूमर प्रोडक्ट बनाने के लिए एनकरेज किया ताकि लोग वापस से पीसफुल और एंटरटेनिंग लाइफ जी सके। तो अकाय ने इस सिचुएशन को समझते हुए कंपोनेंट के अलावा घरों के अंदर यूज़ होने वाले इलेक्ट्रॉनिक और ऑडियो प्रोडक्ट्स को बनाने का भी काम शुरू किया। 50ज की शुरुआत में अकाय ने सबसे पहले कंज्यूमर डिवाइसेस ल्च किए। जिनमें सबसे ज्यादा पॉपुलर हुआ था। इसका रील टू रील टेप रिकॉर्डर यह इतना सक्सेसफुल हुआ कि पूरी दुनिया के म्यूजिशियन इसके दीवाने बन गए। फिर 60ज तक अकाय सिर्फ जापान तक सीमित नहीं रहा। उसने अपने ऑडियो प्रोडक्ट्स को यूरोप और यूएस में भी एक्सपोर्ट करना शुरू कर दिया और फिर वहां की लेटेस्ट टेक्नोलॉजीस को अडॉप करके अपने प्रोडक्ट को और भी बेहतर बनाता गया। उसके बाद में शुरू हुआ अकाय का गोल्डन एरा यानी कि 70ज और 80 का। इस दौरान कंपनी ने एक के बाद एक ऐसे इनोवेटिव प्रोडक्ट को ल्च किया जिन्होंने इंडस्ट्री में नए बेंचमार्क सेट किए। जैसे कि अकाय का वीएस2 वीसीआर। यह दुनिया का पहला ऐसा कंज्यूमर वीसीआर था जो सीधे टीवी स्क्रीन पर डिस्प्ले दिखा था। सोचिए इससे पहले सेटिंग बदलने के लिए वीसीआर के पास झुकना पड़ता था। सो अकाय ने यह सब कुछ खत्म कर दिया। मतलब अपने इनोवेशन प्लस क्वालिटी के फार्मूले का यूज़ करके अकाय ने कैसेट डेक, एंपलीफायर्स, माइक्रोफोन, ट्यूनर्स, रेडियो रिसीवर, टर्न टेबल और लाउड स्पीकर जैसे और भी कई सारी कैटेगरीज में खुद को मजबूती से इस्टैब्लिश कर लिया था। फिर अकाय को लगा कि सिर्फ घर में यूज़ होने वाले ऑडियो प्रोडक्ट से काम नहीं चलेगा। प्रोफेशनल म्यूजिक इंडस्ट्री में भी पैर जमाने होंगे। तो उसने एक नया डिवीजन शुरू किया अकाय प्रोफेशनल नाम से जो म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट और स्टूडियो इक्विपमेंट बनाने पे फोकस किया करता था। फिर 1980 में अकाय ने मॉस्को ओलंपिक में अपने हाई एंड वीडियो इक्विपमेंट सप्लाई करके पूरी दुनिया को प्रूफ कर दिया कि अब वो सिर्फ जापान का ही नहीं बल्कि ग्लोबल टेक्नोलॉजी लीडर बन चुका है। और फाइनली उसके बाद में 1995 में अकाय ने इंडियन मार्केट में कदम रखा और यहां लाने में उसकी हेल्प की कबीर मूलचंदानी की कंपनी बैरोन इंटरनेशनल ने। अकाय ने आते ही कलर टीवी मार्केट को हिला कर रख दिया। अकाय के आने से पहले कलर टीवी की गिनती लग्जरी आइटम में होती थी क्योंकि तब इसकी प्राइस ₹15,000 से ज्यादा हुआ करती थी। वैसे ₹15,30 साल पहले के 15,000 हैं। जिस टाइम 10 ग्राम गोल्ड ₹4,680 का आता था और आज के टाइम में ₹1 लाख पार हो चुका है। सो उस टाइम सिर्फ अपर क्लास के लोग ही कलर टीवी को अफोर्ड कर पाते थे। उस टाइम मार्केट के अंदर वीडियो, BPL, Philips, onida ऐसे खिलाड़ियों का दबदबा था। लेकिन अकाय ने इनकी मजबूत पकड़ को हिला कर रख दिया जिसके लिए इसने एक ऐसी स्ट्रेटजी अपनाई जो आज भी मार्केटिंग की हिस्ट्री का क्लासिक एग्जांपल है। सो इस स्ट्रेटजी के दम पे अकाय ने सिर्फ 18 महीने के अंदर मार्केट शेयर को 0% से 14% तक पहुंचा दिया था। अकाय ने न्यूज़पेपर्स में फुल पेज ऐड छपाया 21 इंच का कलर टीवी मात्र ₹9999 में। इतना ही नहीं साथ में 14 इंच का टीवी, मोबाइल फोन, रेफ्रिजरेटर, बजाज, मोपेड जैसे और भी कई सारे फ्री गिफ्ट्स। इस ऐड के बाद में टीवी खरीदने के लिए लोग टूट पड़े। हर किसी के लिए यह खुली आंखों से सपने देखने जैसा था। वैसे अकाय वो पहली कंपनी थी जिसने इंडियन मार्केट में एक्सचेंज स्कीम का कांसेप्ट इंट्रोड्यूस किया था। पुराना टीवी लाओ और ₹5,000 का डिस्काउंट पाओ। अपनी अग्रेसिव प्राइसिंग से अकाय ने इलेक्ट्रॉनिक मार्केट की जड़े हिला दी और देखते ही देखते मार्केट में आग लग गई। बाकी कंपनीज़ को भी अपनी प्राइसिंग 40% तक कम करनी पड़ी थी। लेकिन अकाय की बात ही कुछ और थी। कम प्राइस, एक्साइटिंग गिफ्ट्स और मेड इन जापान का टैग। इससे ज्यादा इंडियन कस्टमर्स को और क्या चाहिए था। वैसे Bon इंटरनेशनल ने प्रोडक्ट मार्केट में आने से पहले ही उसकी हैवी एडवरटाइजमेंट शुरू कर दी। 

जिससे डिमांड पहले ही क्रिएट होने लग गई डिस्ट्रीब्यूटर्स ने प्रोडक्ट के लिए एडवांस में पेमेंट कर दिया। यानी माल बिकने से पहले ही कंपनी के पास पैसे आ गए थे। डीलर को एक्स्ट्रा मार्जिन मिल रहा था इसलिए वो भी खुश थे। नतीजा यह हुआ 1998 तक अकाय हर साल 4,29,000 से ज्यादा टीवी बेचने लगा था। दोस्तों, यह सफलता नहीं थी बल्कि एक क्रांति थी। अगले 2 साल में अकाय का वो हाल हुआ जिसकी किसी ने भी कल्पना नहीं की थी। यानी साल 2000 में अकाय बैंककरप्ट हो गई। अकाय के डाउनफॉल के संकेत 90ज की शुरुआत से ही दिखने लगे थे। यानी कि इंडियन मार्केट में एंट्री लेने से पहले ही देखिए इंटरनेशनल लेवल पर कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक मार्केट का जो ट्रेंड था वो तेजी से बदलने लगा था। जापान से ही Sony और Panasonic जैसे प्लेयर्स का राइज़ हो रहा था। साउथ कोरिया से LG और Samsung जैसे राइवल्स भी मार्केट में आ गए थे। लेकिन कंपटीशन डाउनफॉल का मेन रीजन नहीं था। असली प्रॉब्लम थी Aki के मैनेजमेंट में। देखिए Aki ने 1991 में अपने ऑडियो इक्विपमेंट बिज़नेस को पूरी तरीके से बंद कर दिया। जरा सोचिए जिस ब्रांड ने ऑडियो इक्विपमेंट से पूरी दुनिया जीती थी, उसी ने 1999 में अपना ऑडियो बिज़नेस हमेशा हमेशा के लिए बंद कर दिया। यह था सबसे पहला और बड़ा रेड फ्लैग। उसके बाद में सिचुएशन और खराब हो गई जब 1997 में एशिया के अंदर फाइनेंसियल क्राइसिस आया जिसका जापान और बाकी एशियन कंट्रीज की इकॉनमी पे बुरा असर पड़ा। तो अकाय ने सर्वाइवल के लिए कॉस्ट कटिंग शुरू कर दी। लेकिन यह मूव पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा साबित हुआ क्योंकि कॉस्ट कटिंग के चक्कर में अकाय को सस्ते प्रोडक्ट बनाने पड़े जो अकाय के पुराने प्रोडक्ट के सामने एकदम फीके थे। यानी क्वालिटी का सिंबल अकाय अब मार्केट में एवरेज प्रोडक्ट बनाने वाला ब्रांड बनता जा रहा था। अब अगर आप में से कोई भी ये सोच रहा है कि टाइमलाइन के हिसाब से अकाय इंडियन मार्केट में तो ग्रो कर रहा था तो यहां क्या गड़बड़ हुई? 1998 में अकाय की पैरेंट कंपनी सेमीटेक कॉरपोरेशन और बैरोन ग्रुप के रिश्तों में दरार आने लगी। कबीर मूलचंदानी ने अपना बिज़नेस ग्रो करने के लिए एक जैपनीज कंपनी आईवा के साथ डील कर ली। उसके बाद में अकाय ने बैरोन इंटरनेशनल के साथ पार्टनरशिप खत्म कर दी और दोनों के रिश्ते अलग हो गए। उसके बाद में अकाय ने वीडियो के साथ हाथ मिलाया। लेकिन वीडियो के पास ऑलरेडी बहुत सारे ब्रांड्स थे। जिनके बीच में अकाय को फिट करना थोड़ा सा मुश्किल था क्योंकि अकाय एक लो प्राइस और बजट फ्रेंडली ब्रांड था जिसे प्रीमियम ब्रांड बनाने के लिए हैवी मार्केटिंग की जरूरत थी और वीडियोक ने उतना खर्चा नहीं किया। नतीजा यह हुआ अकाय नाम का सूरज इंडियन मार्केट में ढलने लगा और एक छोटा सा प्लेयर बनकर रह गया। लेकिन सवाल तो अभी भी वही है बैंककरप्ट क्यों हुआ और वो चौकीदार कौन था? 1994 में अकाय का कंट्रोल हांगकांग के उस टाइम के सक्सेसफुल बिजनेसमैन जेम्स स्टिंग के हाथों में आ गया और यहीं से अकाय के बुरे दिन शुरू हो गए। फ्लैशबैक में जाए तो जेम्स ने कनाडा के एक आलीशान होटल में इन्वेस्टर्स के सामने एक ब्रेकफास्ट प्रेजेंटेशन दिया ताकि वह $85 करोड़ का फंड रेज कर सके। अब देखिए जेम्स ने दो होल्डिंग कंपनीज़ बनाई थी। एक कनाडा के अंदर सेमीटेक कॉरपोरेशन और दूसरी हांगकांग के अंदर सेमीटेक ग्लोबल। अब देखिए जेम्स का प्लान सिंपल सा था। सेमीटेक कॉरपोरेशन से वो पैसे रेज करेगा और सेमीटेक ग्लोबल को भेजेगा। फिर उस पैसे से सिंगर कंपनी के शेयर्स खरीदे जाएंगे। वैसे शायद आपको पता होगा सिंगर एक बहुत पुरानी और जानी मानी सिलाई मशीन बनाने वाली कंपनी थी। तो उसी के शेयर्स खरीदने की बात चल रही है और बाकी के बचे हुए पैसे से सेमीटेक ग्लोबल सिंगर के पावरफुल ब्रांड नेम और ग्लोबल डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क का फायदा उठाकर उसे कंगो मेरिट बनाएगी। मतलब ऐसा मैन्युफैक्चरिंग और मार्केटिंग एंपायर जो सिर्फ सिलाई मशीन तक सीमित ना रहे बल्कि वाशिंग मशीन, कैसेट प्लेयर, रेफ्रिजरेटर जैसे और भी कंज्यूमर प्रोडक्ट्स बनाएगा। सो इन्वेस्टर्स को यह आईडिया काफी अच्छा लगा। तो जेम्स को दो बड़े इन्वेस्टमेंट बैंक की तरफ से फंडिंग मिल गई और जैसे ही पैसा उसके हाथ में आया उसने ताबड़तोड़ एक्सपेंशन करना शुरू किया। सबसे पहले तो सन्वीट और अकाय जैसी बड़ी-बड़ी कंपनीज़ को खरीद लिया।

 वैसे यही वो आदमी था जिसने अपने करियर की शुरुआत चौकीदार के रूप में की थी। अब ये Rolls Roys में घूमने वाला एक बहुत बड़ा बिज़नेस आइकॉन बन चुका था। लेकिन इसके साथ सबसे बड़ी प्रॉब्लम क्या थी कि बड़े-बड़े कॉर्पोरेट डिसीजन लेने से पहले किसी से पूछता नहीं था। डिसीजन मेकिंग में बोर्ड मेंबर्स को इनवॉल्व नहीं करता था। सो कई सारे डायरेक्टर्स ने इसकी कंपनी से रिजाइन देना शुरू कर दिया। फिर जब 1997 में एशियन फाइनेंसियल क्राइसिस आया तो सिंगर और बाकी कंपनीज़ की हालत खराब हो गई। कंपनीज़ लॉस में जाने लगी। सो जेम्स ने 3 साल में लगभग 5000 से ज्यादा एंप्लॉयज़ को काम से निकाल दिया। लेकिन कभी भी उसने अपनी गलती नहीं मानी। क्राइसिस के सिचुएशन में भी वह अपना ही दिमाग चलाता था। किसी से मदद नहीं लेता था। सो नतीजा यह निकला एक-एक करके उसकी सारी कंपनीज़ डूबने लग गई। 1999 में सिंगर कंपनी ने बैंकरप्स फाइल कर दी। कनाडा वाली सेमीटेक कॉरपोरेशन का भी यही हाल हुआ। फिर जेम्स के एंपायर में आखिरी ईंट बची थी अकाय। सो इसे बचाने के लिए जेम्स ने एक दूसरी पैरेंट कंपनी ग्रैंड डे होल्डिंग्स में इसको शिफ्ट कर दिया और कागज पे दिखाने की कोशिश की कि अकाय के पास अभी भी 1 लाख से ज्यादा एंप्लाइजज़ हैं और एनुअल सेज 5.2 बिलियन की होती है यानी कि लगभग ₹46000 करोड़ से ज्यादा की ताकि मार्केट से वो फंडिंग जुटा सके। लेकिन हकीकत यह थी अकाय के ऊपर $1.1 बिलियन यानी कि तकरीबन ₹9760 करोड़ का कर्जा था और आखिरकार अकाय को भी बैंकरप्सी फाइल करनी पड़ी। लेकिन जब ऑडिट शुरू हुई तो एक बड़ा बम फटा और खुलासा हुआ उस दौर के सबसे बड़े कॉर्पोरेट स्कैंडल का। इन्वेस्टिगेशन में पता चला कि जेम्स और उसके टॉप मैनेजर्स ने ₹80 करोड़ यानी कि लगभग ₹700 करोड़ का घोटाला किया है और उसे छुपाने के लिए अकाउंटेंट की मदद से ऑडिट डॉक्यूमेंट्स में भी छेड़छाड़ की थी। फिर जेम्स के साथ वही हुआ जो हर एक फ्रॉडस्टर्स के साथ होता है। लेकिन अकाय की सालों पुरानी रेपुटेशन और क्रेडिबिलिटी पे एक गहरा धब्बा लग गया जिसे वो आज भी मिटा नहीं पाया है। अब अकाय के पास सिर्फ एक ही चीज बची थी। उसका अकाय ट्रेडमार्क यही उसकी कमाई का आज जरिया है। देखिए अकाय की पैरेंट कंपनी ग्रैंड डे होल्डिंग्स जो बाद में निंबल होल्डिंग्स बन गई उसने लाइसेंसिंग और कोलैबोरेशन स्ट्रेटजी अपनाई यानी कि अकाय अब खुद मैन्युफैक्चरिंग नहीं करता है बल्कि अपना नाम लाइसेंस पे देता है और लोकल कंपनीज़ के साथ टाई अप करके प्रोडक्ट ल्च करता है। जैसे अगर हम हमारे देश की बात करें तो अकाय को होमटेक डिजिटल लिमिटेड ऑपरेट करती है। इसीलिए अकाय का नाम आज भी आपको टीवी, फ्रिज, एसी, वाशिंग मशीन, स्पीकर ये सब पे देखने को मिलता है और कई सारे कस्टमर्स यादों के चलते इन्हें खरीद भी लेते हैं। लेकिन दोस्तों, 90ज़ वाला वो ओरिजिनल अकाय सिर्फ अब कहानी बनकर रह गया है। ठीक उसी प्रकार जैसे एसएल वर्ल्ड के साथ हुआ था।

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