कोयले से बिजली कैसे बनती है ?

कोयले से बिजली कैसे बनती है ?

         

  जय हिंद दोस्तों आज हम आपको बताएंगे कोयले से बिजली कैसे बनती है ? कैसे ट्रेन की मदत से कोयला कोल यार्ड में लाया जाता है ? कैसे बॉयलर से स्टीम बनाकर अलटरनेटर घुमाया जाता है?कैसे बिजली बनती है,ओर कैसे  भेजी जाती है ? तो  पूरा आर्टिकल ध्यान पढ़िए 

कोल यार्ड 

  सबसे पहले समजना  होगा  इलेक्ट्रिक पावर प्लांट जो होता है, वो बहोत बढ़ा होता है। लगभग ३-४ किलोमीटर एरिया में  फैला होता है। उसमे कई पार्ट होते है। सबको हम एक एक करके समजते है। सबसे पहले आता है ,कोल यार्ड! अब ये कोल यार्ड क्या होता है ? ये पहले समझेंगे।  कोल यार्ड कोयला स्टोअर करनेकी जगह को कहा जाता है।  जहा लगभग १.५ मिलियन टन कोयला रखा होता है। जिससे इलेक्ट्रिक पॉवर प्लांट ४० दिन तक बिना रुके चालू रह सकता है इतना कोयला रखा होता है।  इस वजेसे इलेक्ट्रिक पावर प्लांट को कभी कोयला कम नहीं पड़ता।  ओर यह कोयला खदान से कोल यार्ड तक ट्रैन की मदत से लाया जाता है। कोल यार्ड में कोयला आता है , वो एक साइज का नहीं होता। इसीलिए उसे कन्वेयर बेल्ट की मदत से क्रेशर में डाला जाता है।  क्रेशर में कोयला छोटे छोटे टुकडो मे बट जाते है। उसके बाद कोयले को क्रेशर के आगे कन्वेयर बेल्ट की मदत से बाउल मिल में भेजते है।  बाउल मिल में कोयले को पाउडर बनाया जाता है।  जिससे की भट्टी में कोयला अच्छी तरह जल सके। किसी भी इलेक्ट्रिक पावर प्लांट का आधा हिस्सा कोल यार्ड में जाता है। 


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बॉयलर 

     कोल  यार्ड के बाद काम शुरू होता है बॉयलर का। बॉयलर एक ऐसी मशीन होती है, जहा कोयले की पावडर से   आग लगाई जाती है ओर  पानी को बॉईल किया जाता है। जो बॉयलर  होता है उसमे बॉयलर  के बीचो बिच कोयले की मदत से आग लगाई जाती है।  बॉयलर की चारो ओर पानी की टुब रहती है। जिसमे पानी बेहता रहता है।बॉयलर के ऊपर बहोत बड़ी पानी की टंकी रहती है वहा वह टुब में बहता पानी जमा हो जाता है जिसको  उबाल के भांप  बनाई जाती है। ये भाप या स्टीम बहोत दबाव वाली होती है। जिसे की पाइप की मदत से आगे पहुँचाया जाता है।  

टरबाइन 

    बॉयलर के बाद काम शुरू होता है टरबाइन का।  टरबाइन जो होता है वो एक तरह का कई पंखो का समूह होता है।  जिसको घुमाने के लिए इस स्टीम का यूज़ करते है।  टरबाइन कई प्रकार के होते है। इस टरबाइन को घुमने के लिए बहोत हाय प्रेशर स्टीम का इस्तेमाल किया जाता है।  ओर टरबाइन घुमने लगता है।  टरबाइन में एक शाफ़्ट जुड़ा रहता है जो टरबाइन घुमनेसे शाफ़्ट घूमने लगता है।  ओर  यही शाफ़्ट आगे जनरेटर को जुड़ा रहता है।  

जनरेटर 

     टरबाइन के बाद काम शुरू होता है जनरेटर का।  टरबाइन का जो शाफ़्ट घुमता रहता है। वह आगे जनरेटर को जुड़ा रहता है जिससे जनरेटर घूमने लगता है।  जनरेटर में बहोत बड़ा आल्टर नेटर बना रहता है। जिसमे बिजली बनती है।  उसको फिर ट्रांसफार्मर की मदत से अलग अलग शहरो मे भेजा जाता है।     



 
    
  

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